विश्वकर्मा जी की आरती

सुख और वैभव के लिए पढ़ें ये आरती

श्री विश्वकर्मा जी की आरती (Shri Vishwakarma Ji Ki Aarti)

भगवान विश्वकर्मा जी को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है। इसीलिए विश्वकर्मा जयंती के दिन सभी कारखानों, फेक्ट्र‍ियों, दुकानों और कार्यालयों में स्थित मशीनों की पूजा की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि विश्वकर्मा जी की रोज़ आरती करने और विश्वकर्माजी का पूजा पाठ करने से क्या लाभ होता है। अगर नहीं, तो आइए जानते हैं विश्वकर्मा जी की आरती के महत्व के बारे में।

श्री विश्वकर्मा आरती का महत्व (Importance Of Vishwakarma Aarti)

शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर कोई व्यक्ति रोज भगवान विश्वकर्मा जी की आरती करता है या फिर आरती पढ़ता है, तो उसके सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है। वहीं विश्वकर्मा जी की आरती पढ़ने से जातक को धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति भी होती है। विश्वकर्मा आरती के प्रभाव से व्यापार में वृद्धि होती है और वह हर सुख का भागीदार बनता है, उसे किसी भी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होता है। तो आइए पढ़ते है विश्वकर्मा जी की आरती।

श्री विश्वकर्मा जी की आरती के लिरिक्स (Sri Vishwakarma Aarti Ke Lyrics)

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा । सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।

आदि सृष्टि मे विधि को, श्रुति उपदेश दिया । जीव मात्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।

ऋषि अंगीरा तप से, शांति नहीं पाई । ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।

रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना । संकट मोचन बनकर, दूर दुःखा कीना ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।

जब रथकार दंपति, तुम्हारी टेर करी । सुनकर दीन प्रार्थना, विपत सगरी हरी ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे। त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप साजे ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।

ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे । मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।

श्री विश्वकर्मा की आरती, जो कोई गावे । भजत गजानांद स्वामी, सुख संपति पावे ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा । सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ॥