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ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति ग्रह को सबसे बड़ा और सबसे शुभ ग्रह माना जाता है। लेकिन बृहस्पति की एक स्थिति जातक के जीवन में दुख-दरिद्रता ला सकती है। हर मनुष्य की कुंडली में कई शुभ-अशुभ योग होते हैं, उनमें से एक है ‘गुरु चांडाल योग’। यह योग अत्यंत विनाशकारी माना जाता है। मान्यता है कि जिन लोगों की कुंडली में गुरु चांडाल योग योग होता है, उन्हें जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
आइये जानते हैं गुरु चांडाल योग क्या है और इसका प्रभाव व उपाय क्या है।
अगर कुंडली में राहु बृहस्पति एक साथ हों तो गुरु चांडाल योग बनता है। कुंडली में कहीं भी यह योग बनता हो तो हानिकारक ही होता है। हालांकि अगर ये लग्न, पंचम या नवम भाव में हो, तो इसका प्रभाव विशेष नकारात्मक होता है। यदि समय पर गुरु चांडाल दोष के लिए उचित उपाय न किया जाए तो कुंडली के शुभ योग भी अशुभ फल देने वाले हो जाते हैं।
गुरु चांडाल दोष तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति की कुंडली में बृहस्पति और राहु का संयोग होता है। इस दोष के प्रभाव से व्यक्ति का जीवन दुख व चुनौतियों से भर जाता है। विशेषकर उन लोगों के लिए, जिनकी कुंडली में बृहस्पति केंद्र स्थान में स्थित है, राहु का प्रभाव अधिक होता है।
इस योग के कारण व्यक्ति को मानसिक तनाव, चिंता और मान-सम्मान में कमी का सामना करना पड़ता है। मेष, वृषभ, सिंह, कन्या, वृश्चिक, कुंभ और मीन राशि के जातकों पर गुरु चांडाल दोष का प्रभाव अधिक देखा जाता है। आपको बता दें कि इस दोष को कालसर्प दोष से भी घातक बताया गया है।
जातक की कुंडली में बना गुरु चांडाल योग तब तक रहता है, जबतक राहु उसकी राशि से निकलकर दूसरी राशि में नहीं चले जाते। राहु के राशि परिवर्तन के बाद गुरु चांडाल योग समाप्त हो जाता है।