मंत्र सिद्ध कैसे करते हैं?

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सद्गुरु से मिला हुआ Mantra ‘सबीज मंत्र’ कहलाता है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का अनुभव कराने वाली शक्ति निहित होती है।Mantra अगर गुरु ने दीक्षा देकर दिया हो तो और प्रभावी होता है, जिन्होंने मंत्र सिद्ध किया हुआ हो, ऐसे महापुरुषों द्वारा मिला हुआ मंत्र साधक को भी सिद्धावस्था में पहुंचाने में सक्षम होता है।

3 प्रकार के मंत्र होते हैं-

1.वैदिक

2.तांत्रिक और

3.शाबर मंत्र।

..पहले तो आपको यह तय करना होगा कि आप किस तरह के मंत्र को जपने का संकल्प ले रहे हैं। साबर मंत्र बहुत जल्द सिद्ध होते हैं, तांत्रिक मंत्र में थोड़ा समय लगता है और वैदिक मंत्र थोड़ी देर से सिद्ध होते हैं। लेकिन जब वैदिक मंत्र सिद्ध हो जाते हैं और उनका असर कभी समाप्त नहीं होता है।

मंत्र जप तीन प्रकार हैं:- 1.वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप। वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है।

मन्त्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मन्त्र का सही उच्चारण। जब तक मन्त्र का सही एवं शुद्ध उच्चारण नहीं किया जायेगा तब तक अभीष्ट परिणाम की आशा करना व्यर्थ है। इसलिए यदि आप प्रथम बार किसी मन्त्र की साधना प्रारम्भ कर रहे हों तो संस्कृत-भाषा के किसी जानकार व्यक्ति से मन्त्र का सही उच्चारण एवं न्यास आदि की विधियाँ क्रियात्मक रूप से सीख-समझ लेनी चाहिए। हवन में जिन मन्त्र के साथ जिस प्रकार की हवन-सामग्री बतायी गयी है, उसी का प्रयोग करना चाहिए। अपनी तरफ से कुछ घटाना या बढ़ाना नहीं चाहिए।

श्रद्धा और विश्वास, साधना के मेरुदण्ड हैं जिनके ऊपर ही यह शास्त्र फलित होता है। श्रद्धा और विश्वास को निरन्तर बनाये हुए रखकर समान संख्या का जप करना चाहिए। अपनी ओर से मन्त्र की संख्या में सुविधानुसार घट-बढ़ नहीं करनी चाहिए और न ही बार-बार मन्त्र और इष्ट देवता का परिवर्तन, अन्यथा कुछ भी हाथ नहीं लगता है।

आप मन्त्र-साधना प्रारम्भ करते हैं तो मन्त्र का जप पूर्ण होने पर हवन अवश्य करें। हवन लौह-पात्र में न करें अन्यथा अनिष्ट फल की प्राप्ति होती है। पीपल के बड़े पात्र में या फर्श पर ईटें बिछाकर उस पर बालू डालकर, जमीन से चार-छः अंगुल ऊँची वेदी बनाकर यज्ञ सम्पन्न करें । पीपल, पलाश, गूलर, खैर, शमी, चन्दन आदि की समिधा का हवन में प्रयोग करें। आम वृक्ष की समिधा जो आजकल प्रायः हवन में प्रयुक्त ही जा रही है, उसका कोई शास्त्रीय आधार नहीं है, यह पूर्णतः वेद-विरुद्ध व आर्ष सिद्धान्तों के विपरीत है।

मंत्र नियम : मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है। किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए। साधक को योग्य गुरु के सानिध्य में ही साधना करनी चाहिए। गुरु का आत्मदान और शिष्य का आत्मसमर्पण इन दो धाराओं के मिलन से ही सिद्धि प्राप्त होती है।

मंत्र सिद्धि कैसे की जाती है?

मंत्र को सिद्ध करने के दो उपाय है – जात सूतक निवृत्ति और मृत सूतक निवृत्ति।

1. जात सूतक निवृत्ति : इसके लिए जप के प्रारंभ से एक सौ आठ बार ॐ कार से पुटित करके इष्ट मंत्र का जप करना चाहिए।

2. मृत सूतक निवृत्ति : इसके लिए भूत लिपि विधान करे।

नियम :

1. इस प्रकार नित्य एक हजार जप एक महीने तक करने से ही मंत्र जागरित होता है।

2. पूर्व में तीन प्राणायाम और अंत में भी तीन प्राणायाम करने चाहिए।

3. प्राणायाम का नियम यह है की चार मंत्र से पूरक, सोलह मंत्र से कुंभक और आठ मंत्र से रेचक करना चाहिए।

4. जप पूरा होने पर मानसिक रूप से उसे इष्ट देवता के दाहिने हाथ में समर्पित कर लेना चाहिए। यदि देवी इष्ट स्वरुप हो तो उसके बाएं हाथ में समर्पित करना चाहिए।

5. प्रतिदिन अनुष्ठान के अंत में जप का दंशांश हवन, हवन का दंशांश तर्पण, तर्पण का दंशांश अभिषेक और यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन करना चाहिए।

6. यदि नियम संख्या पांच का पालन किसी वजह से संभव न हो सके तो जितना होम हुआ है, उससे चौगुना जप ब्राह्मणों को, छः गुना क्षत्रियों को तथा आठ गुना वैश्य को करना चाहिए।

7. अनुष्ठान के 5 अंग : जप, होम, तर्पण, अभिषेक और ब्राह्मण भोजन।

यदि होम तर्पण अभिषेक न हो तो ब्राह्मण या गुरु के आशीर्वाद मात्र से भी ये कार्य सम्पन्न माने जा सकते है।

8. स्त्रियों को होम-तर्पण आदि की आवश्यकता नहीं है। केवल मात्र से ही उन्हें सफलता मिल जाती है।

9. अनुष्ठान पूर्ण होने तक प्रत्येक विधि से गुरु को संतुष्ट एवं प्रसन्न करे।

मं‍त्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है, मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है और मं‍त्र से किसी यक्षिणी और यक्ष को भी साधा जाता है। मंत्र जब सिद्ध हो जाता है तो उक्त मंत्र को मात्र तीन बार पढ़ने पर संबंधित मंत्र से जुड़े देवी, देवता या अन्य कोई आपकी मदद के लिए उपस्थित हो जाते हैं।
ऐसे भी कई मंत्र होते हैं जिनमें किसी बाधा को दूर करने की क्षमता होता है तो उन्हें जपने से वे बाधाएं दूर हो जाती है। ‘मंत्र साधना’ भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है। यदि आपके जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या या बाधा है तो उस समस्या को मंत्र जप के माध्यम से हल कर सकते हैं।

मंत्र के द्वारा हम खुद के मन या मस्तिष्क को बुरे विचारों से दूर रखकर उसे नए और अच्छे विचारों में बदल सकते हैं। लगातार अच्छी भावना और विचारों में रत रहने से जीवन में हो रही बुरी घटनाएं रुक जाती है और अच्छी घटनाएं होने लगती है। यदि आप सात्विक रूप से निश्चित समय और निश्चित स्थान पर बैठक मंत्र प्रतिदिन मंत्र का जप करते हैं तो आपके मन में आत्मविश्वास बढ़ता है साथ ही आपमें आशावादी दृष्टिकोण भी विकसित होता है जो कि जीवन के लिए जरूरी है।