कैला देवी चालीसा

जीवन में उन्नति के लिए करें इसका पाठ


कैला देवी की चालीसा (Kaila Maiya Ki Chalisa)

कैला देवी की कहानी (Kaila Devi Ki Kahani)

क्या आप जानते हैं कि कैला देवी कौन थीं और उनकी चालीसा का पाठ करने से जातक को कौन-कौन से लाभ होते है। अगर नहीं तो आज हम इस लेख में जानेगे कि कैला देवी की चालीसा का पाठ करने से क्या होता है। आप सभी ने श्री कृष्ण जन्म कथा तो सुनी ही होगी। उस कथा के अनुसार श्री कृष्ण के पिता वासुदेव जी श्री कृष्ण को नंद बाबा के घर छोड़ने गए थे और उनके घर पर भी एक कन्या ने जन्म लिया था, उसे साथ लेकर आते है। उसी समय जब कंस को इस बात का पता चलता है कि देवकी ने बच्चे को जन्म दिया है, तब वह वहां आता है और उस कन्या को हाथ से उठाकर पास में पड़े पत्थर पर पटक कर मारने वाला होता ही है। तभी वह बच्ची कंस के हाथ से छुटकर आकाश में चली जाती है और एक देवी के रूप में बदल जाती है और कहती हैं कि तुम्हें मारने वाला इस दुनिया में जन्म ले चुका है। उन्हीं देवी को कलियुग में कैला देवी के नाम से पूजा जाता है।

कैला देवी की चालीसा पढ़ने के लाभ (Benefits of reading Kaila Devi Chalisa)

कैला देवी बहुत ही दयालु हैं वे अपने भक्तों की सभी मुरादेंं पूरी करती है। मैया अपने भक्तों से जाने अनजाने में हुई गलतियों को भी माफ कर देती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भी भक्त रोज कैला मैया की चालीसा (Kela Devi Chalisa) पढ़ता है, उसके सारे कार्य बन जाते है और कार्य के बीच में आने वाली बाधाएं दूर होती है। रोज माँ कैला देवी की चालीसा पढ़ने वाला भक्त धन, बल, विद्या और बुद्धि से परिपूर्ण होता ह और जीवन में उन्नति करता है। इसी के साथ सुबह-शाम कैला देवी की चालीसा (Kaila Maiya Ki Chalisa) पढ़ने से भूत प्रेत का साया कभी नहीं सताता और जातक के जीवन से दरिद्रता व दु:खों का नाश होता है। तो आइए पढ़ते है कैला देवी की चालीसा (Kaila Devi Chalisa in Hindi) सरल भाषा में।

कैला देवी चालीसा के लिरिक्स (Kaila Devi Chalisa Ke Lyrics)

॥ दोहा ॥

जय जय कैला मात हे तुम्हे नमाउ माथ। शरण पडूं में चरण में जोडूं दोनों हाथ॥

आप जानी जान हो मैं माता अंजान। क्षमा भूल मेरी करो करूँ तेरा गुणगान॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय कैला महारानी, नमो नमो जगदम्ब भवानी।

सब जग की हो भाग्य विधाता, आदि शक्ति तू सबकी माता।

दोनों बहिना सबसे न्यारी, महिमा अपरम्पार तुम्हारी।

शोभा सदन सकल गुणखानी, वैद पुराणन माँही बखानी।

जय हो मात करौली वाली, शत प्रणाम कालीसिल वाली।

ज्वालाजी में ज्योति तुम्हारी, हिंगलाज में तू महतारी।

तू ही नई सैमरी वाली, तू चामुंडा तू कंकाली।

नगर कोट में तू ही विराजे, विंध्यांचल में तू ही राजै।

धौलागढ़ बेलौन तू माता, वैष्णवदेवी जग विख्याता।

नव दुर्गा तू मात भवानी, चामुंडा मंशा कल्याणी।

जय जय सूये चोले वाली, जय काली कलकत्ते वाली।

तू ही लक्ष्मी तू ही ब्रम्हाणी, पार्वती तू ही इन्द्राणी।

सरस्वती तू विद्या दाता, तू ही है संतोषी माता।

अन्नपुर्णा तू जग पालक, मात पिता तू ही हम बालक।

तू राधा तू सावित्री, तारा मतंग्डिंग गायत्री।

तू ही आदि सुंदरी अम्बा, मात चर्चिका हे जगदम्बा।

एक हाथ में खप्पर राजै, दूजे हाथ त्रिशूल विराजै।

कालीसिल पै दानव मारे, राजा नल के कारज सारे।

शुम्भ निशुम्भ नसावनि हारी, महिषासुर को मारनवारी।

रक्तबीज रण बीच पछारो, शंखासुर तैने संहारो।

ऊँचे नीचे पर्वत वारी, करती माता सिंह सवारी।

ध्वजा तेरी ऊपर फहरावे, तीन लोक में यश फैलावे।

अष्ट प्रहर माँ नौबत बाजै, चाँदी के चौतरा विराजै।

लांगुर घटूअन चलै भवन में, मात राज तेरौ त्रिभुवन में।

घनन-घनन घन घंटा बाजत, ब्रह्मा विष्णु देव सब ध्यावत।

अगनित दीप जले मंदिर में, ज्योति जले तेरी घर-घर में।

चौसठ जोगिन आंगन नाचत, बामन भैरों अस्तुति गावत।

देव दनुज गन्धर्व व किन्नर, भूत पिशाच नाग नारी नर।

सब मिल माता तोय मनावे, रात दिन तेरे गुण गावे।

जो तेरा बोले जयकारा, होय मात उसका निस्तारा।

मना मनौती आकर घर सै, जात लगा जो तोंकू परसै।

ध्वजा नारियल भेंट चढ़ावे, गुंगर लौंग सो ज्योति जलावै।

हलुआ पूरी भोग लगावै, रोली मेहंदी फूल चढ़ावे।

जो लांगुरिया गोद खिलावै, धन बल विद्या बुद्धि पावै।

जो माँ को जागरण करावै, चाँदी को सिर छत्र धरावै।

जीवन भर सारे सुख पावै, यश गौरव दुनिया में छावै।

जो भभूत मस्तक पै लगावे, भूत-प्रेत न वाय सतावै।

जो कैला चालीसा पढ़ता, नित्य नियम से इसे सुमरता।

मन वांछित वह फल को पाता, दुःख दारिद्र नष्ट हो जाता।

गोविन्द शिशु है शरण तुम्हारी, रक्षा कर कैला महतारी।

॥ दोहा ॥

संवत तत्व गुण नभ भुज सुन्दर रविवार। पौष सुदी दौज शुभ पूर्ण भयो यह कार॥