हनुमान जी की आरती का महत्व (Importance of Hanuman ji’s Aarti)
हिंदू धर्म में हनुमान जी को सबसे बलशाली व बुद्धिमान देवता के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि सभी देवताओं में सिर्फ हनुमान जी ही हैं जो कलयुग में धरती पर मौजूद हैं। इन्हें भगवान शिव का रूद्र अवतार भी माना गया है, जिनका जन्म रामायण काल में प्रभु श्रीराम की सहायता के लिए हुआ था। हिंदू धर्म में सभी देवी देवताओं की पूजा-अर्चना आरती बिना अधूरी मानी जाती है। आरती करने का अर्थ होता है कि भक्तों का पूरे मन से अपने पूज्य देवी देवता की भक्ति में लीन हो जाना और उन्हें प्रसन्न करना। मान्यता है कि पूजा के दौरान मंत्र उच्चारण भले ही न किया जाए लेकिन अगर आरती की जाए तो इससे आपकी आराधना सिद्ध हो जाती है।
हनुमान जी की आरती की रचना महान संत व कवि श्री रामानंद ने की। रामानंद जी की गिनती भगवान हनुमान के परम भक्तों में की जाती है। इन्होंने पवन पुत्र की पूजा अर्चना के लिए हनुमान आरती की रचना की। हनुमान जी की पूजा व आरती करने से मनुष्य को सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है और जीवन में आने वाली सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती है।
हनुमान जी की आरती करने की विधि (Method of performing Aarti of Hanuman ji)
- माना जाता है कि हनुमान जी की आरती पूरे विधि विधान से की जाए जो भगवान प्रसन्न होते हैं और मन को भी शांति मिलती है।
- हमेशा तांबें, पीतल या चांदी की थाली में ही हनुमान जी की आरती करें।
- थाल में आरती के लिए किसी ठोस धातु या आटे से बना एक दीया, घी, कपूर के साथ रूई की पांच बातियां रखें। आरती के लिए आप एक या 5 दीयों का प्रयोग कर सकते हैं। ध्यान रखें कि दीये में एक, पांच या फिर सात बाती ही जलाएं।
- अपनी इच्छानुसार थाल में फूल, अक्षत व प्रसाद के रूप में बूंदी या लड्डू भी रख लें।
- हनुमान जी की प्रतिमा या फोटो के सामने आरती के थाल के आरती गायें।
- आरती के समय शंख व घंटी का प्रयोग भी करें।
- आमतौर पर हनुमान जी की आरती दिन में 2 बार की जाती है। एक सुबह व दूसरी शाम के समय।
हनुमान जी की आरती करने के 10 लाभ (10 benefits of performing aarti of Hanuman ji)
- रोजाना नियम से हनुमान जी की आरती करने से घर से नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक शक्तियों का वास होता है।
- मन में अगर किसी प्रकार का डर या भय हो जो हनुमान जी की आरती से वह दूर हो जाता है।
- जीवन में सुख व समृद्धि आती है।
- मनुष्य को मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिल जाती है।
- परिवार में सुख शांति बनी रहती है और जीवन में खुशहाली आती है।
- हनुमान जी की आरती करते समय व्यक्ति के आसपास प्रकाश का एक सुरक्षा कवच बन जाता है, जो व्यक्ति को नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से बचाता है।
- मनुष्य में तामसिक प्रवृतियां खत्म हो जाती हैं। सात्विक प्रवृति का आगमन होता है।
- भक्तों में ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी पूजा के दौरान अगर कोई गलती हो जाए तो उसकी भरपाई आरती करके पूरी की जा सकती है।
- नियम से हनुमान जी की आरती करने से हर मनोकामना पूरी होती है।
- नौकरी या व्यापार में सफलता के लिए हनुमान जी की आरती का बहुत महत्व है।
हनुमान जी की आरती करते समय रखें इन बातों का ध्यान (Keep these things in mind while performing Hanuman ji’s aarti)
- स्वच्छ तन व मन से ही हनुमान जी की पूजा अर्चना व आरती करें।
- साफ सुथरे वस्त्र पहनें।
- आरती के समय मन को कहीं और भटकने न दें।
- आरती समाप्त होने के बाद मौजूद सभी लोगों को दोनों हाथों से थाल के ऊपर हाथ फेरते हुए आरती लेनी चाहिए।
- आरती रोजाना सुबह या शाम के समय ही करें।
- आरती से पहले हनुमान जी की पूजा अवश्य करें। किसी भी भगवान की आरती बिना उनकी पूजा के नहीं करना चाहिए।
- नौकरी या व्यापार में सफलता के लिए हनुमान जी की आरती का बहुत महत्व है।
हनुमान जी की आरती हिंदी में (Hanuman ji Aarti in Hindi)
॥ आरती के लिरिक्स ॥
आरती कीजै हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे । रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥ अंजनि पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ॥ आरती कीजै हनुमान लला की ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए । लंका जारि सिया सुधि लाये ॥ लंका सो कोट समुद्र सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ॥ आरती कीजै हनुमान लला की ॥
लंका जारि असुर संहारे । सियाराम जी के काज सँवारे ॥ लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे । लाये संजिवन प्राण उबारे ॥ आरती कीजै हनुमान लला की ॥
पैठि पताल तोरि जमकारे । अहिरावण की भुजा उखारे ॥ बाईं भुजा असुर दल मारे । दाहिने भुजा संतजन तारे ॥ आरती कीजै हनुमान लला की ॥
सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें । जय जय जय हनुमान उचारें ॥ कंचन थार कपूर लौ छाई । आरती करत अंजना माई ॥ आरती कीजै हनुमान लला की ॥
जो हनुमानजी की आरती गावे । बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥ लंक विध्वंस किये रघुराई । तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥