माँ दुर्गा की पूजा विधि और महत्व

पूजा में रखें इन बातों का विशेष ध्यान

मां दुर्गा कौन हैं ? (Who is Maa Durga)

सनातन धर्म में मां दुर्गा प्रमुख देवी हैं। दुर्गा को 108 नामों से जाना जाता है। इन्हें शक्ति व न्याय की देवी भी कहा जाता है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, मां दुर्गा का नाम दुर्गम नाम के महान दैत्य का वध करने के कारण पड़ा। संस्कृत में दुर्गा का अर्थ होता है किला या सुरक्षित-संरक्षित स्थान। मां दुर्गा को कभी-कभी दुर्गतिनाशिनी भी कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है कि वह जो कष्टों को दूर करती है। आदिशक्ति दुर्गा को कहीं वैष्णवी तो कहीं चामुण्डा, भगवती के नाम से जाना जाता है। सावित्री, लक्ष्मी व पार्वती से अलग मां दुर्गा के और भी रूप हैं। इनका मुख्य रूप गौरी है, जिसका अर्थ है शांतमय, सुंदर व गोरा रूप। माता का सबसे भयानक रूप काली है, अर्थात काला रूप। कई रूपों में मां दुर्गा देश के मंदिरों व तीर्थस्थानों में पूजी जाती हैं।

ज्यादातर मंदिरों में स्थापित प्रतिमा में मां दुर्गा बाघ पर लाल वस्त्र में शांत अवस्था में बैठी दिखती हैं। यही नहीं, माता की 8 भुजाओं में विभिन्न शस्त्र भी देखने को मिलते हैं। हिंदू ग्रंथों में मां दुर्गा शिव की पत्नी पावत्री के रूप में वर्णित हैं। जिन ज्योतिर्लिंगों में देवी दुर्गा की स्थापना होती है, उन्हें सिद्धपीठ कहते हैं। यहां सभी संकल्प जरूर पूरे होते हैं। मां दुर्गा को अंधकार व अज्ञानता रूपी राक्षसों से रक्षा करने वाली, ममतामई, मोक्ष प्रदायनी व कल्याणकारी माना जाता है।

मां दुर्गा का महत्व व उत्पत्ति (Importance and origin of Maa Durga)

देश में मां दुर्गा के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। कहीं पर महिषासुरमर्दिनि शक्तिपीठ तो कहीं पर कामाख्या देवी नाम से प्रसिद्ध हैं। कोलकाता में महाकाली तो सहारनपुर के प्राचीन शक्तिपीठ मे शाकम्भरी देवी के रूप में मां दुर्गा पूजी जाती हैं। माना जाता है कि अगर मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं तो अपने भक्तों की झोली खुशियों से भर देती हैं। बुरी शक्ति हो या कोई दोष मां के आशीर्वाद से सब खत्म हो जाता है। माता अपने भक्तों को मनचाहा फल भी प्रदान करती हैं। बिना माता की अराधना के तंत्र विद्या भी अधूरी मानी जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता का जन्म सबसे पहले दुर्गा के रूप में ही माना जाता है। इनका जन्म राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए हुआ था। इसी वजह से इन्हें महिषासुरमर्दिनि भी कहा जाता है। कहा जाता है कि एक बार महिषासुर ने देवताओं को भगाकर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद सभी देवता मिलकर ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे समाधान मांगा। ब्रह्मा जी बताया कि दैत्यराज का वध कुंवारी कन्या के हाथ ही संभव है। जिसके बाद ब्रह्मा, विष्णु व शिव सहित सभी देवताओं ने मिलकर अपने तेज को एक जगह समाहित किया और इस शक्ति से मां दुर्गा का जन्म हुआ। सभी शक्तियों से मिलकर बनी दुर्गा जी को इसलिए आदिशक्ति भी कहा जाता है।

मां दुर्गा की पूजा कैसे करें (How to worship Maa Durga)

  • मां दुर्गा की पूजा के लिए शुक्रवार का दिन शुभ माना जाता है।
  • अपने घर में मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो के सामने माता की पूजा अर्चना की जा सकती है। आप किसी माता के मंदिर जाकर भी पूजा कर सकते हैं।
  • पूजा के लिए सुबह स्नान करके गुड़हल या लाल पुष्प ले लें।
  • तांबे के लोटे में शुद्ध जल लें, उसमें गंगाजल की कुछ बूंदे मिलाकर माता के स्थान पर छिड़क दें।
  • माता को प्रिय लाल चुनरी चढ़ायें। सिंदूर से माता को टीकें।
  • इसके बाद माता को पुष्प, फल अर्पित कर घी का दीपक जलायें। माता को लौंग का भोग अवश्य लगाएं।
  • कपूर या दीपक से माता की आरती करें।

मां दुर्गा की पूजा करने के लाभ (Benefits of worshiping Maa Durga)

  • सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं।
  • भक्तों को मनचाहा फल प्राप्त होता है।
  • महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  • घर में धन के साथ सुख समृद्धि का आगमन होता है।
  • भूत-प्रेत का साया दूर भाग जाता है।
  • सरस्वती रूप में मां की पूजा से ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  • कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है।
  • खासतौर पर महिलाओं में एक नई ऊर्जा यानी आत्मविश्वास जागृत होता है।
  • व्यापार में उन्नति के रास्ते खुल जाते हैं।
  • शत्रुओं पर विजय हासिल होती है।

मां दुर्गा की पूजा में ये ना करें (Do not do this in the worship of Maa Durga)

  • मां दुर्गा की पूजा के दौरान मन व विचारों को पवित्र रखें।
  • मंदिर या कहीं भी महिलाओं का अपमान न करें।
  • किसी भी अनैतिक कार्य की कामना लेकर माता की पूजा न करें।
  • कभी भी बिना नहायें माता की पूजा न करें।
  • घर में मां दुर्गा के स्थान व अन्य जगहों पर साफ सफाई का खास ख्याल रखें।
  • पूजा के बाद मां दुर्गा की आरती करना न भूलें।