Home » शनिवार व्रत विशेष
सनातन धर्म में शनिदेव को न्याय के देवता के रूप में जाना जाता है। सभी देवताओं में शनिदेव ही एक ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा लोग आस्था के साथ डर से भी करते हैं। इसकी मुख्य वजह शनि देव का न्यायाधीश का पद है। शनि देव निष्पक्ष न्याय करने वाले देवता हैं, वे व्यक्ति को उसके अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। शनि देव को कलयुग में भी निष्पक्ष न्याय करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। पंडितों के अनुसार शनि देव जब व्यक्ति से प्रसन्न होते हैं तो भक्तों का उद्धार करते हैं और जब नाराज होते हैं तो व्यक्ति के जीवन में उथल-पुथल मचा देते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिन्दू धर्म में नवग्रहों में शामिल शनि देव का विशेष महत्व है। शनि देव को धर्मराज माना गया है। व्यक्ति के सभी अच्छे और बुरे कर्मों का फल शनिदेव ही देते हैं। ज्योतिषों की माने तो शनि देव की अशुभ दृष्टि यदि किसी राशि पर पड़ जाए तो जातक के जीवन में भूचाल आ जाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक रूप से व्यक्ति परेशान हो जाता है। शनिदेव को प्रसन्न रखने से धन, नौकरी और व्यापार में उन्नति मिलती है। साथ ही सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है और विवाह संबंधी सभी समस्याएं खत्म हो जाती हैं।
शनि देव को प्रसन्न करने के लिए सबसे पहले गरीबों और ज़रुरतमंदों की मदद करनी चाहिए। ऐसा करने वालों पर शनि देव की विशेष कृपा रहती है। अगर आप भी शनि देव की कृपा चाहते हैं तो आपको काले चने, काले तिल, उड़द दाल और कपड़े सच्चे मन से दान करते रहना चाहिए।
शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हर शनिवार को आपको प्रातः स्नान करने के बाद शनि यंत्र की पूजा करनी चाहिए। इससे आपकी नौकरी और व्यापार से जुड़ी समस्याएं दूर होंगी और घर परिवार में सुख समृद्धि आएगी।
मंत्रः- ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः मंत्रः- ॐ शं शनिश्चरायै नमः ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि मंत्र का जाप करना अत्यंत लाभकारी होता है। शनि मंत्र का जाप करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और जीवन के सभी संकट खत्म होते हैं।
कुत्तों की सेवा करने वालों से शनिदेव बहुत प्रसन्न होते हैं। कुत्तों को खाना देने और उनकी देखभाल करने वालों पर शनि देव कभी रुष्ट नहीं होते और ऐसे लोगों पर अपनी कृपा बनायें रखते हैं।
अंजनी पुत्र हनुमान जी और शनिदेव का गहरा नाता है। दोनों के बीच अटूट और घनिष्ठ मित्रता है यदि कोई व्यक्ति शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करता है तो उस पर शनि देव की विशेष कृपा बनती है।
भगवान भोलेनाथ शनिदेव के गुरु हैं। जो व्यक्ति भगवान शिव की आराधना करता है, शिवलिंग पर तिल डालकर जल चढ़ाता है, शनिदेव सदैव उससे प्रसन्न रहते हैं।
शनिदेव के जन्म की कथा शनि जन्म के विषय में एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है। सूर्य देव का विवाह दक्ष पुत्री संज्ञा से हुआ। कुछ समय बाद उन्हें तीन संतानों के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई। इस तरह कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया, लेकिन संज्ञा भगवान सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं। अब सूर्य का तेज सहन कर पाना उसके लिए मुश्किल होता जा रहा था। सूर्य देव के तेज को कम करने के लिए संज्ञा ने एक उपाय किया, सूर्य देव को इसकी भनक न हो इसलिए जाने से पहले वह संतान के लालन-पालन और पति की सेवा के लिए उन्होंने तपोबल से अपनी हमशक्ल छाया को उत्पन्न किया। छाया को पारिवारिक जिम्मेदारी सौंपकर संज्ञा पिता दक्ष के घर चली गई। छाया रूप होने के कारण सवर्णा को सूर्य देव के तेज से कोई परेशानी नहीं हो रही थी। कुछ समय बाद सूर्य देव और छाया के मिलन से शनि देव का जन्म हुआ। जन्म के समय से ही शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और बड़े केशों वाले थे। एक बार की बात है शनि देव की पत्नी संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर उनके पास पहुंची। लेकिन शनिदेव कृष्ण जी की आराधना में लीन थे। उनके काफी प्रयास के बाद भी शनि देव अपने तप से नहीं जागे, जिससे नाराज होकर उन्होंने शनिदेव को श्राप दे दिया और कहा कि आज के बाद जिस व्यक्ति पर शनि देव की दृष्टि पड़ेगी वह तबाह हो जाएगा। ध्यान से जागने के बाद शनि देव को भूल का आभास हुआ और उन्होंने पत्नी को मनाने की कोशिश की। इसके लिए शनिदेव ने अपनी पत्नी से क्षमा भी मांगी। लेकिन शनि देव की पत्नी के पास श्राप को निष्फल करने की शक्ति नहीं थी। इसके बाद से शनि देव अपना सिर नीचे करके चलने लगे, जिससे की उनकी दृष्टि पड़ने से किसी का विनाश न हो।