शिव तांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotram)
सनातन धर्म में मंत्र और स्तोत्र का विशेष महत्व माना जाता है। धर्म शास्त्रों में मंत्र जाप और स्तोत्र के नियमित पाठ के द्वारा भगवान को प्रसन्न करने का विधान है। साधक प्रतिदिन पूजा और आरती के समय मंत्रों और स्त्रोतों का जाप कर अपने आराध्य देवों को प्रसन्न करते हैं। भगवान शिव के परम भक्त लंकापति रावण ने एक विशेष स्तुति की रचना करी थी, जो शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना जाता है।
शिव तांडव स्तोत्र क्या है ? (What is Shiv Tandav Stotram?)
शिवताण्डव स्तोत्र स्तोत्रकाव्य में अत्यन्त लोकप्रिय है। यह पंचचामर छन्द में आबद्ध है। इसकी अनुप्रास और समास बहुल भाषा संगीतमय ध्वनि और प्रवाह के कारण शिवभक्तों में प्रचलित है। शिव तांडव स्तोत्र की प्रभावशाली भाषा एवं काव्य-शैली की वजह से शिवस्तोत्रों में विशिष्ट माना जाता है। शिवताण्डव स्तोत्र में दशानन ने 17 श्लोक से भगवान भगवान की स्तुति की है।
शिव तांडव स्तोत्र किसने और क्यों लिखा ? (Who wrote Shiv Tandav Stotram and Why?)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंकापति रावण अहंकार में कैलाश पर्वत को अपने भुजाओं से उठाने का प्रयास करने लगा। तभी भगवान भोलेनाथ ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को हल्का सा दबा दिया, जिसके वजह से कैलाश पर्वत हिला नहीं लेकिन रावण के दोनों हाथ पर्वत के नीचे दब गए। उस समय रावण को असहनीय पीड़ा हुई और उसे अपनी भूल का एहसास हुआ। रावण ने उसी पीड़ा के बीच भगवान शिव से क्षमा याचना करते हुए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की।
शिव तांडव स्तोत्र का महत्व (Importance of Shiv Tandav Stotram)
धार्मिक मान्यता है कि शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने से महादेव नृत्य, चित्रकला, लेखन, योग, ध्यान, समाधी आदि सिद्धियों को प्रदान करने वाले हैं। ऐसे में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से इन सभी विषयों में सफलता प्राप्त होती है। शिव तांडव स्तोत्र का जाप करने या सुनने से व्यक्ति को अपार शक्ति, सौंदर्य और मानसिक शक्ति मिलती है।
शिव तांडव स्तोत्र सुनने के लाभ (Benefits of Shiv Tandav Stotram)
विद्वानों की माने तो भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से सुबह और शाम को करना चाहिए। ऐसा करने से महादेव तो खुश होते ही हैं, साथ ही साधक को कभी भी धन-सम्पति की कमी नहीं होती है।
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से जातक को कर्ज और आर्थिक संकटों से छुटकारा मिलता है।
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ नियमित करने से गृहस्थ जीवन सुखमय होता है। परिवार में खुशहाली और समृद्धि आती है। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से दांपत्य जीवन में प्रेम बढ़ता है।
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ को करने से जातक का चेहरा तेजमय होता है, ओजस्वी व्यक्तित्व के साथ आत्मबल मजबूत होता है।
शिव तांडव स्तोत्र की विधि (Process of Chanting Shiv Tandav Stotram)
· शिव तांडव स्तोत्र का पाठ सुबह उठ कर ब्रह्म मुहूर्त में करना चाहिए।
· शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने के लिए पहले स्नान करना चाहिए और उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
· शिव तांडव स्तोत्र का पाठ शुरू करते समय श्रद्धाभाव से दीप, धूप, गंगाजल और नैवेद्य से भोलेनाथ का पूजन करें।
· पीड़ा में होने के कारण दशानन रावण ने शिव तांडव स्तोत्र को तेज स्वर में गाया था। इसलिए आप भी गाकर शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें और भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होंगे।
· कहा जाता है कि शिव तांडव स्तोत्र का पाठ नृत्य के साथ करना सर्वोत्तम होता है, लेकिन तांडव नृत्य केवल पुरूषों को ही करना चाहिए। वहीं पाठ पूर्ण हो जाने के बाद भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए।
· इसके अलावा जिन लोगों की कुण्डली में सर्प योग, कालसर्प योग या पितृ दोष लगा हुआ हो, उन्हें भी शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। पूजा-पाठ संपूर्ण होने के बाद भगवान शिव का ध्यान करें।
· शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करते समय मन में किसी के प्रति दुर्भावना नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह पाठ अत्यंत शक्तिशाली और ऊर्जावान है।
शिव तांडव स्तोत्रम् – मंत्र (Shiv Tandav Stotram in hindi)
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी, विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥2॥
धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर, स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि, क्वचिद्दिगम्बरे(क्वचिच्चिदम्बरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणा मणिप्रभा, कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे, मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर, प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक, श्रियै चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा, निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम्।
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं, महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥6॥
कराल भाल पट्टिका धगद्धगद्धग ज्ज्वला, द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक, प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥
नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्, कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः।
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्तिसिन्धुरः, कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधर: ॥8॥
प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा, वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं, गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी, रसप्रवाह माधुरी विजृम्भण मधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं, गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥10॥
जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस, द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल, ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥11॥
स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः, समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ॥12॥
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्, विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः, शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥13॥
इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं, पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं, विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥14॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं, यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां, लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः॥15॥
॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम् ॥