मां दुर्गा का महागौरी अवतार
महागौरी, मां दुर्गा का 8वां रूप हैं और माता ने यह अवतार शुंभ, निशुंभ नाम के दानवों को मारने के लिए लिया था। महागौरी का अर्थ होता है, अत्यधिक सफेद और गोरा होना। महागौरी को ‘गौर’ यानी सफेद रंग होने का वरदान प्राप्त था और इसी कारण वह इतनी सुंदर और कोमल हैं। माता महागौरी को अक्सर माता पार्वती का ही एक रूप कहा जाता है क्योंकि माता पार्वती की तपस्या के कारण ही उन्हें महागौरी अवतार प्राप्त हुआ था।
माता महागौरी के गोरे रंग के कारण ही, उन्हें अक्सर शंख या चंद्र की सुंदरता से भी उपमित किया जाता है। माता पार्वती के रंग के जैसे उनके कपड़े, श्रृंगार, वाहन और शस्त्र भी सफेद और सुंदर हैं। माता पार्वती की आयु, आठ वर्ष मानी जाती है। उनका स्वभाव बहुत कोमल और सौम्य है।
माता महागौरी के नीचे वाले दाहिने हाथ में हमेशा एक त्रिशूल होता है, जबकि उनका ऊपर वाला दाहिना हाथ, हमेशा अभय मुद्रा में ही होता है। उनके ऊपर वाला बायां हाथ, हमेशा वर मुद्रा में होता है, जबकि उनके नीचे वाले बाएं हाथ में एक डमरू होता है।
महागौरी को बहुत ही शांत और शील माना जाता है, जिस कारण उनका ध्यान करने से मनुष्य और जीव, दोनों को शांति प्राप्त होती है। माता महागौरी का वाहन बैल है, जो उनके रंग की तरह श्वेत यानी सफेद है।
ऐसी मान्यता है, कि एक दिन शिव जी ने ब्रह्मा जी के कहने पर, माता पार्वती को उनके काले रंग के कारण बहुत चिढ़ाया और उन्हें परेशान कर दिया। तब माता पार्वती गुस्से में आ गईं और उन्होंने सफेद रंग पाने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की।
वहीं शुंभ, निशुंभ को मारने के लिए देवतागण, अलग-अलग तरीके खोज रहे थे। इसलिए ब्रह्मा जी ने माता पार्वती से आग्रह किया, कि वह अपनी तपस्या को कुछ समय तक रोककर शुंभ और निशुंभ नामक दानवों का वध करें।
शुंभ और निशुंभ दो ऐसे दानव थे, जिन्होंने संसार में हाहाकार मचा रखा था और वरदान के मुताबिक, दोनों को केवल एक अविवाहित कन्या ही मार सकती थी। माता पार्वती अविवाहित थीं, इसलिए ब्रह्मा जी ने उन्हें शुंभ और निशुंभ के संहार के लिए चुना।
इसके बाद, माता पार्वती हिमालय चली गईं और वहां जाकर उन्होंने गंगा में स्नान किया। जैसे ही वह गंगा में स्नान करने गईं, उनकी काली त्वचा उनके शरीर से धुल गई और वह एकदम सफेद हो गईं। माता पार्वती, सफेद वस्त्रों में गंगा से बाहर आईं, जिसमें वह बहुत ही सुंदर दिख रहीं थीं। इसी के बाद से, उन्हें महागौरी की उपाधि प्राप्त हुई।
इसके बाद, माता ने काली से कालिका, चंद्रघंटा और चामुंडा अवतार लेकर बड़े-बड़े दानवों का संहार किया। फिर माता महागौरी वापस अपने काली रूप में आईं और उन्होंने शुंभ व निशुंभ का वध किया।
शुंभ और निशुंभ के संहार के बाद, माता काली वापस महागौरी के रूप में प्रकट हुईं और तभी से उनका नाम महागौरी पड़ा। शुंभ और निशुंभ को मारने के बाद ही, माता पार्वती को शिव पुराण में महासरस्वती और अंबिका की उपाधि भी मिली।
माता महागौरी के प्रमुख मंदिरों में से एक उत्तराखंड के गौरी कुंड में मौजूद है। वहां हर वर्ष अनेकों भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
माँ दुर्गा के इस अवतार को पूजने से उनके भक्तों को भी शांति प्राप्त होती है। जो भी भक्त, माता महागौरी का सुमिरन करते हैं, उन्हें माता धन धान्य व सुख समृद्धि से परिपूर्ण कर देती हैं। कहते हैं यदि माता के विशेष मंत्र का पूर्ण मनोयोग से ध्यान किया जाए तो सभी इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
माता की आराधना का विशेष मंत्र इस प्रकार है-
ॐ देवी महागौर्यै नम
अर्थात, ओम के समान समस्त लोक को अपने में समाहित करने वाली माता गौरी हमें अपनी शरण प्रदान करें और हमारे दुखों का नाश करें। हम सभी माता को बारंबार नमस्कार करते हैं।
माता महागौरी के रूप को अलौकिक सिद्धियों का वर प्राप्त है। उनका दिया हुआ हर आशीर्वाद, भक्तों के सभी कष्टों को नष्ट कर देता है। इसी के साथ-साथ, महागौरी के मंत्रों का जाप करने से असंभव कार्य भी संभव और पूर्ण होते हैं।
विशेष- महागौरी के अवतार से हमें यह सीखने को मिलता है, कि एक स्त्री कोमल और दयालु होने के साथ साथ अपने शत्रुओं से लड़ने व उन्हें पराजित करने की भी क्षमता रखती है। इसलिए हर व्यक्ति को हर स्त्री का सम्मान करना चाहिए और उन्हें कभी भी कम नहीं आंकना चाहिए।