गायत्री मंत्र

गायत्री मंत्र, अर्थ और लाभ

गायत्री मंत्र: अर्थ और लाभ

गायत्री महामंत्र वेदों का एक महत्वपूर्ण मंत्र है जिसकी महत्ता ॐ के लगभग बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के मंत्र ‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ और ऋग्वेद के छन्द 3.62.10 के मेल से बना है।

इस मंत्र में सवितृ देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है।

ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है।

इसे श्री गायत्री देवी के स्त्री रूप में भी पूजा जाता है। यहां हम गायत्री मंत्र के अर्थ और लाभ के बारे में बता रहे हैं।

 

गायत्री बीज मंत्र:

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

मंत्र का अर्थ:

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।

मंत्र का लाभ:

  1. गायत्री मंत्र का नियमित रूप से सात बार जप करने से व्यक्ति के आसपास नकारात्मक शक्तियां बिल्कुल नहीं आती है।
  2. जप से कई प्रकार के लाभ होते हैं, व्यक्ति का तेज बढ़ता है और मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है। बौद्धिक क्षमता और मेधा शक्ति यानी स्मरण शक्ति बढ़ती है।
  3. गायत्री मन्त्र में चौबीस अक्षर होते हैं, यह 24 अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं।
  4. इसी कारण ऋषियों ने गायत्री मन्त्र को सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला बताया है।