Home » श्री अग्नि मंत्र
सनातन संस्कृति में किसी भी कार्य को किए जाने के पूर्व विधि विधान से पूजन किया जाता है। पूजन के समाप्त होने के पश्चात हवन किया जाता है। हवन पूजन के सफलता पूर्वक पूरा होने का प्रतीक है। इसलिए हिंदू धर्म में हवन का विशेष महत्व होता है। हवन को शुरू किए जाने के पूर्व अग्नि देव का आवाहन किया जाता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो मंत्र उच्चारण कर कुंड में अग्नि को प्रज्वलित किया जाता है। इसके लिए पूजन करने वाले ब्राह्मण द्वारा विशेष अग्नि गायत्री मंत्र पढ़ा जाता है। वैदिक ग्रंथों के माने तो अग्नि देव की सात जीभें उनके शरीर से विकिरित प्रकाश की सात किरणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। भेड़ उनका वाहन है। कुछ छवियों में अग्नि देव को एक रथ पर सवारी करते हुए भी दिखलाया गया है जिसे बकरियों और तोतों द्वारा खींचा जा रहा होता है। अग्नि देव की दिशा दक्षिण है। वैदिक देवता, अग्नि देवताओं के संदेशवाहक और बलिदान कर्ता हैं। अग्नि जीवन की चमक है जो हर जीवित चीज़ में है। अग्निदेव की सात जिह्वाएं बताई गई है। ये हैं – काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, धूम्रवर्णी, स्फुलिंगी तथा विश्वरूचि हैं।
अग्नि देवता को भगवान इद्रं का जुड़वां भाई माना जाता है वो उन्हीं की तरह विशाल शक्तिशाली और बलवान हैं। पुराणों के अनुसार, अग्नि देव की पत्नी का नाम स्वाहा है। इनके तीन पुत्र पावक, पवमान और शुचि है। इनके पिता ब्रह्मा जी और माता सरस्वती है। इनकी सवारी यानी की वाहन भेड़ है। अग्नि देव पंच तत्वों मे से एक हैं। इन्हें यज्ञ और हवन का सबसे महान अंग माना जाता है। हवन के माध्यम से इन्हीं के द्वारा आहुति देवताओं तक पहुँचती है। इसलिए अग्नि देव को सभी देवताओं का मुख भी कहा जाता है। अग्नि देव सर्वत्र प्रकाश करने वाले एवं सभी पुरुषार्थों को प्रदान करने वाले हैं। सभी रत्न अग्नि से उत्पन्न होते हैं और सभी रत्नों को यही धारण करते हैं। वेदों में भी अग्नि को महान देवताओं में प्रमुख माना गया है। यह जीवन दाता हैं। अग्नि के बिना जीवन मृत्यु के तुल्य है। अग्नि देव मनुष्य के जन्म से लेकर मरण तक साथ रहते हैं। शादी विवाह में अग्नि के ही समक्ष सात फेरे लिए जाते हैं। हिन्दू मान्यता में बिना अग्नि में चिता के जले हुए मुक्ति प्राप्त नहीं होती। हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि यज्ञ का प्रयोजन तभी पूरा होता है, जबकि आह्वान किए गए देवता को उनका पसंदीदा भोग पहुंचा दिया जाए। हवन सामग्री में मीठे पदार्थ का शामिल होना भी आवश्यक है, तभी देवता संतुष्ट होते हैं।
अर्थ – हे अग्नि देवता मेरा प्रणाम स्वीकार करें और मेरे अनुष्ठान को सफल बनाएं।
अर्थ – हे अग्नि देव मैं आपको नमन करता हूँ, मुझे बुद्धि प्रदान करें, अग्नि देव मेरे भविष्य और मेरे मन को अपने प्रकाश से रोशन करें।
अर्थ – हे अग्नि देव आपके बिना जीवन संभव नहीं है आपके सबके पालनहार हैं मुझे आशीर्वाद दें और कष्टों का अंत करें।
अर्थ – पृथ्वी सहित चौदह भुवनों के सभी जीवों के स्वामी परमात्मा तृप्त हो जाते हैं। जिसे पढ़ने से भगवान प्रसन्न होते है और भोजन में हमे संतुष्टि मिलती है।
अर्थ – मैं परम वास्तविकता नारायण को नमन करता हूं
अग्नि ईश्वर और मानव जाति के बीच मध्यस्थ्ता का कार्य करतें हैं। आग हमेशा कुछ बलिदान मांगती है ताकि उसे प्रार्थना की जा सके और कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले उपहारों की भेंट अग्नि देव को चढ़ाई जाती है। ‘अग्नि’ दस माताओं के पुत्र है यह दस माताएं मनुष्यों की दस अंगुली को स्पष्ट करती है। अग्नि अमीर-गरीब सभी के देवता हैं। वो किसी के साथ दो व्यवहार नहीं करते। विनम्रता से उनसे प्रार्थना करने पर वो धन, बल एवं समृद्धि प्रदान करते हैं।
बिना स्नान किए श्री अग्नि मंत्र का जाप नहीं करना चाहिए।
श्री अग्नि मंत्र का जाप करते समय मंत्रों का उच्चारण शुद्ध रूप से करना चाहिए।
श्री अग्नि मंत्र का जाप करते समय तामसिक भोजन ग्रहण न करें।
श्री अग्नि मंत्र का जाप करते समय ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
श्री अग्नि मंत्र का जाप करते समय किसी के प्रति बुरे ख्याल नहीं रखना चाहिए।
श्री अग्नि मंत्र का जाप करते समय किसी के लिए छल-कपट की भावना नहीं रखनी चाहिए।