Home » वरुण मंत्र
सनातन धर्म में जल को वरुण देव कहा गया है। वरुण देवता को देवताओं के देवता कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं की माने तो देवताओं के तीन वर्गो यानी पृथ्वी, वायु और आकाश में वरुण का सर्वोच्च स्थान है। वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड के अनुसार वरुण प्रजापति कश्यप और उनकी पत्नी अदिति के ग्यारहवें पुत्र हैं। श्रीमद्भागवतपुराण के अनुसार वरुणदेव की पत्नी का नाम चर्षणी है। वरुणदेव का वाहन मगरमच्छ है और वे जललोक के अधिपति हैं। वरुण देव को नैतिक शक्ति का महान पोषक माना गया है, वह ऋत (सत्य) का पोषक है। ऋग्वेद के सातवें मंडल में वरुण के लिए सुंदर प्रार्थना गीत मिलते हैं। वरुणदेव को प्रचेता भी कहतें हैं। इनके भाई क्रमश: सूर्यनारायण, इन्द्रदेव, मित्र, भग, अर्यमा, पूषा, वामनदेव आदि हैं।
‘जल’ मनुष्य जीवन के लिए बेहद आवश्यक है। जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मनुष्य हो या पशु-पक्षी सभी के लिए जल बहुत ज़रूरी है। हमारे शरीर की तरह ही पृथ्वी के तीन हिस्सों में जल का ही स्त्रोत है। इसलिए जल की महत्वता अपने आप में आश्यक हो जाती है। जल की इसी महत्वता को स्वीकारते हुए वरुण देव को सर्वोच्च देवता माना जाता है। तीनों लोक के देवता, ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बाद वरुण देव का ही स्थान आता है। वरुण देव को वैदक काल से ही वर्षा लाने का स्त्रोत माना जाता है। भगवान वरुण को सर्वज्ञानी कहा जाता है। वह सभी जल निकायों के स्वामी है। वरुण जल के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। सृष्टि के आधे से ज्यादा हिस्से पर इन्हीं का अधिकार है। पंच तत्वों में भी जल का महत्व सर्वाधिक है। देवताओं में तीसरा स्थान ‘वरुण’ का माना जाता है जो समुद्र के देवता, विश्व के नियामक और शसक सत्य के प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन रात के कर्ता-धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य के निर्माता के रूप में जाने जाते हैं।
वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज भी पूजा जाता है। उनका विश्वास है कि जल से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और जल ही जीवन है। जल-ज्योति, वरुणावतार, झूलेलाल सिंधियों के ईष्ट देव हैं जिनके बागे दामन फैलाकर सिंधी यही मंगल कामना करते हैं कि सारे विश्व में सुख-शांति, अमन-चैन, कायम रहे और चारों दिशाओं में हरियाली और खुशहाली बनी रहे। भगवान झूलेलाल के अवतरण दिवस को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाता है।
ॐ जल बिम्बाय विद्महे! नील पुरुषाय धीमहि! तन्नो वरुण: प्रचोदयात्॥ अर्थ – मैं जल के प्रतिबिम्ब का ध्यान करते हुए हे समुद्र के नीले रंग के राजा,मुझे उच्च बुद्धि प्रदान करें। जल के देवता को मेरे मन को रोशन करने की प्रार्थना करता हूँ
“ॐ अपां पतये वरुणाय नमः” अर्थ – हे जल के देवता मेरा नमन स्वीकार करें और मुझे सद्बुद्धि देते हुए मेरे सभी कार्य सफल करें।
नमोस्तु लोकेश्वर पाश पाने यादौ, गणैर्वन्दित पाद् पद्मम। पीठेऽत्रय देवेश गृहाण पूजां, पाहि त्वमस्यमान भगवन्नमस्ते।। अर्थ – हे समुद्र के नीले रंग के राजा मेरा प्रणाम स्वीकार करें। मेरी आराधना से प्रसन्न होकर मेरे घर पधारें और मुझे अपना आशीर्वाद दें।
ॐ धुवासु त्वासु क्षितिषु क्षियंतोव्य अस्मत्पाशं वरुणो मुमोचत् अवो वन्वाना अदिते रूपस्था द्यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः स्वः || अर्थ – यह मन्त्र एक लाख जपने से सिद्ध होता है और यह मन्त्र वर्षा करने में, ऋण मुक्ति में और घर में सुख शान्ति प्राप्त करने से अत्यन्त सहायक है।
ॐ वाम वरुणाय नमः अर्थ – हे वरुण देवता मैं आपको प्रणाम कर रहा हूँ मुझे अपने आशीर्वाद से अनुग्रहित करें।